प्रस्तावना
भारतीय सनातन धर्म की परंपरा में राधा और कृष्ण का स्थान अत्यंत पावन और दिव्य माना जाता है। श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का पूर्णावतार माना गया है और राधा को उनकी आत्मशक्ति। दोनों की लीलाएं, प्रेम और भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाती हैं।
ऐसी कई कथाएं हैं जहाँ भक्तों को श्रीराधा-कृष्ण ने अपने दिव्य स्वरूप में दर्शन दिए। यह लेख एक ऐसी ही अद्भुत और सत्य घटना पर आधारित है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी ने अपने एक परम भक्त को साक्षात दर्शन देकर उसकी जीवन की दिशा ही बदल दी।
भूमिका – राधा-कृष्ण की महिमा
श्रीकृष्ण और राधारानी केवल प्रेम के प्रतीक नहीं, बल्कि भक्ति, आत्मसमर्पण और दिव्यता के सर्वोच्च उदाहरण हैं। ब्रज, वृंदावन, नंदगांव, बरसाना आदि स्थानों पर आज भी लाखों भक्त श्रीराधा-कृष्ण की उपासना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो सच्चे हृदय से, निस्वार्थ भक्ति करता है, उसे भगवान अवश्य दर्शन देते हैं।
>कथा की शुरुआत – एक गरीब ब्रजवासी की भक्ति
यह कथा वृंदावन के समीप एक छोटे से गाँव की है। वहाँ एक वृद्ध ब्रजवासी "श्यामदास" नाम का व्यक्ति रहता था। उसका जीवन अत्यंत साधारण था – न कोई धन था, न संतान, न ही कोई बड़ा घर। उसका जीवन एक झोपड़ी में गुजरता था। लेकिन उसके पास जो सबसे अनमोल चीज़ थी, वह थी राधा-कृष्ण के प्रति उसकी अटूट भक्ति।
श्यामदास प्रतिदिन तड़के उठकर यमुना स्नान करता, तुलसी की माला फेरता और राधा-कृष्ण के नाम का जप करता। उसके पास खाने को भले एक वक्त की रोटी न हो, लेकिन भजन करना और राधा-कृष्ण को प्रेम से पुकारना उसकी दिनचर्या थी
संकट में भी अडिग भक्ति
एक बार गांव में भयंकर अकाल पड़ा। बारिश न होने के कारण फसलें सूख गईं। लोग गाँव छोड़कर बाहर जाने लगे। लेकिन श्यामदास कहीं नहीं गया। वह रोज़ राधा-कृष्ण की मूर्ति के सामने बैठकर उनसे बात करता – "मुझे नहीं चाहिए धन, नहीं चाहिए वैभव। बस एक बार, केवल एक बार अपने दर्शन दे दो प्रभु, ताकि इस जीवन की सार्थकता हो जाए।"
लोग उसका उपहास उड़ाते, कहते – "भक्त बनकर क्या मिला? भूखे मर रहे हो, दर्शन तो दूर, खाना भी नहीं है।" लेकिन श्यामदास मुस्कुराता और कहता – "वो आएँगे, अवश्य आएँगे।"
प्रेम और प्रतीक्षा – सात वर्ष बीते
श्यामदास की यह भक्ति और प्रतीक्षा सात वर्षों तक चली। हर दिन वह फूल चढ़ाता, मिट्टी के दीप जलाता, कच्चे आटे से भोग बनाता और उन्हीं दो मिट्टी की मूर्तियों को प्रेम से सजाता। उसने न कभी प्रश्न किया, न ही भक्ति छोड़ी।
वह कहता – "मेरे राधा-कृष्ण मुझसे दूर नहीं हैं। वो यहीं हैं। मुझे बस उस दिन का इंतजार है जब वो अपने सच्चे स्वरूप में प्रकट होंगे।"
दिव्य रात – जब राधा-कृष्ण प्रकट हुए
एक पूर्णिमा की रात थी। चारों ओर पूर्ण चंद्र की रोशनी फैली हुई थी। श्यामदास उस रात भी तुलसी के पौधे के नीचे बैठकर भजन गा रहा था –
"राधे राधे जपो चले आएंगे माधव..."
अचानक उसके समक्ष एक अद्भुत प्रकाश फैला। पहले तो उसे लगा कि चाँदनी की छाया है, लेकिन धीरे-धीरे वह प्रकाश तेज होता गया। उसकी आँखें चौंधिया गईं।
उसने आँखें बंद कर लीं और जैसे ही खोलीं, उसके समक्ष राधा और कृष्ण अपने संपूर्ण दिव्य रूप में खड़े थे।
राधा के वस्त्र कमल के जैसे लाल थे, उनके केशों में जूही और बेला के फूल थे, और उनके मुख से अद्भुत सुगंध निकल रही थी। श्रीकृष्ण ने नीले वस्त्र धारण किए थे, उनके हाथों में बंसी थी और मुरली की धुन स्वयं वातावरण में गूंज रही थी।
श्यामदास रो पड़ा। उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। वह उनके चरणों में गिर गया और बोला –
"प्रभु! राधे! तुमने मेरे जीवन को धन्य कर दिया। अब मैं मृत्यु को भी गले लगाने को तैयार हूँ।"
राधा-कृष्ण का आशीर्वाद
श्रीकृष्ण ने श्यामदास को उठाया और कहा –
"श्यामदास,
तेरी भक्ति ने हमें बाध्य कर दिया। हम नंद के यशोदा सुत हैं, प्रेम के अधीन हैं। तू सात वर्षों से जिस प्रेम और प्रतीक्षा से हमें पुकार रहा था, वह हमारे हृदय को स्पर्श कर गया।"
राधारानी ने कहा –
"जिस भक्त के हृदय में सच्चा प्रेम और निस्वार्थ समर्पण होता है, वहाँ हम सदैव निवास करते हैं।"
इसके बाद दोनों ने श्यामदास को वरदान दिया –
"तू अब अपने जीवन के शेष समय में हमारे प्रेम को संसार में बाँट। हम तुझे इतना प्रेम और संतोष देंगे कि तुझे कभी किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं होगी।"
उसके बाद का जीवन
श्यामदास के जीवन में फिर कभी भूख या दुःख नहीं आया। वह उसी झोपड़ी में रहने लगा, लेकिन उसका हृदय संतोष और आनंद से भर गया। उसके पास दूर-दूर से भक्त आने लगे, और वह सबको यही कहता –
"प्रभु को पाने का कोई मूल्य नहीं, केवल प्रेम और धैर्य चाहिए।"
श्यामदास ने अपने जीवन के अंतिम दिन तक भजन किया और राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रचार किया। अंत में उसने वहीं समाधि ली जहाँ उसे दर्शन हुए थे।
कथा का सार – भक्ति का बल
इस कथा से यह स्पष्ट होता है
कि राधा और कृष्ण अपने भक्तों के प्रेम और भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होते हैं। यदि भक्ति सच्ची हो, निःस्वार्थ हो, तो भगवान स्वयं आकर अपने भक्त के जीवन को प्रकाशमान करते हैं।
भक्ति में कोई दिखावा नहीं चाहिए, न ही वैभव। केवल मन से पुकारने की शक्ति होनी चाहिए। जिस प्रकार श्यामदास ने सात वर्षों तक बिना थके, बिना मांगे केवल प्रेमपूर्वक भक्ति की, उसी प्रकार हम सब भी ईश्वर के प्रति निष्ठावान रहें तो अवश्य दिव्य दर्शन का अनुभव होगा।
निष्कर्ष
राधा और कृष्ण की यह कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम ही परमात्मा तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है। धन, ज्ञान, यश – ये सब क्षणिक हैं, लेकिन प्रेम और भक्ति – ये शाश्वत हैं। अगर आपके हृदय में सच्चा प्रेम है, तो राधा-कृष्ण अवश्य आपको दर्शन देंगे, चाहे वह स्वप्न में हो या जाग्रत अवस्था में।



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