भगवान जगन्नाथ: श्रीकृष्ण का दिव्य रूप और उनकी अनोखी महिमा
भारत की आध्यात्मिक परंपरा में अनेक देवी-देवताओं की पूजा होती है, लेकिन कुछ देवता ऐसे होते हैं जिनका स्वरूप, पूजा पद्धति और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत विशिष्ट होता है। ऐसे ही एक महान देवता हैं भगवान जगन्नाथ, जिन्हें श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भी विशेष स्थान रखता है।
इस लेख में हम जानेंगे भगवान जगन्नाथ की कथा, उनका स्वरूप, रथ यात्रा का महत्व, धार्मिक विश्वास, और आज के युग में उनकी प्रासंगिकता।
भगवान जगन्नाथ कौन हैं?
"जगन्नाथ" शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है — "जगत" (संसार) और "नाथ" (स्वामी या रक्षक)। अर्थात्, जगन्नाथ का अर्थ होता है “संपूर्ण संसार के स्वामी”। भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का ही एक विशेष रूप माना जाता है,
जो उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ पूजित होते हैं।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में इन तीनों स्वरूपों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो लकड़ी से निर्मित होती हैं — यह एक अद्भुत और अनोखी बात है, क्योंकि अधिकांश हिंदू मंदिरों में पत्थर की मूर्तियाँ होती हैं।
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास
पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर भारत के चार पवित्र धामों (चार धाम यात्रा) में से एक है। इसे 12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने बनवाया था। यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय से जुड़ा हुआ है और इसकी वास्तुकला कलिंग शैली की एक अद्भुत मिसाल है।
मंदिर की एक और अनूठी बात यह है कि इसका ध्वज हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है और मंदिर के ऊपर रखा सुदर्शन चक्र हर दिशा से देखने पर सामने नजर आता है।
भगवान जगन्नाथ का स्वरूप
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अन्य देवी-देवताओं से बिलकुल अलग है। उनके पास हाथ और पैर नहीं होते, आंखें बड़ी-बड़ी गोल होती हैं, और उनका शरीर गहरे काले रंग का होता है। यह रूप श्रीकृष्ण की लीला से जुड़ा हुआ माना जाता है।
कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता यशोदा श्रीकृष्ण को देखकर अत्यधिक प्रेम से भर उठीं, तो उन्होंने अपने पुत्र को हमेशा उसी रूप में देखने की कामना की — उसी भावनात्मक ऊर्जा से प्रेरित होकर भगवान जगन्नाथ का यह रूप प्रकट हुआ।
रथ यात्रा: श्रद्धा और भक्ति का महापर
भगवान जगन्नाथ की सबसे प्रसिद्ध उत्सव रथ यात्रा है, जो हर वर्ष आषाढ़ महीने (जून-जुलाई) में आयोजित होती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विशाल रथों में बैठकर गुंडिचा मंदिर तक यात्रा करते हैं। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।
रथ यात्रा केवल ओडिशा ही नहीं, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में भी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस्कॉन (ISKCON) संस्था ने इस परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलाया है।
धार्मिक मान्यता और रहस्य
भगवान जगन्नाथ से जुड़ी कई रहस्यमयी बातें हैं:
1. मूर्तियों का नवीनीकरण (नवकलेवर):
हर 12-19 वर्षों में इन मूर्तियों को बदल दिया जाता है। इस प्रक्रिया को "नवकलेवर" कहा जाता है। नई मूर्तियाँ एक विशेष पेड़ (नीम की लकड़ी, जिसे 'दरसिंघा' कहा जाता है) से बनाई जाती हैं और पुराने मूर्तियों को मंदिर परिसर में ही मिट्टी में समाधि दी जाती है।
2. प्रसाद (महाप्रसाद):
जगन्नाथ मंदिर का प्रसाद 'महाप्रसाद' कहलाता है और यह पहले भगवान को अर्पित किया जाता है। इसे रसोई में लकड़ी की आग से पकाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्रसाद कभी खत्म नहीं होता, चाहे कितने भी श्रद्धालु हों।
3. समुद्र की ध्वनि का गायब होना:
मंदिर के सिंह द्वार पर कदम रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है, लेकिन जैसे ही बाहर निकलते हैं, वह आवाज फिर सुनाई देने लगती है।
भगवान जगन्नाथ का आधुनिक महत्व
आज के समय में भगवान जगन्नाथ केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं हैं, बल्कि सांस्कृतिक एकता, समर्पण और सेवा का प्रतीक बन चुके हैं। उनके रथ को खींचने के लिए कोई जाति-पंथ नहीं पूछा जाता। वे "सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय" की भावना के प्रतीक हैं।
जगन्नाथ संस्कृति केवल पूजा पद्धति तक सीमित नहीं है; यह एक जीवन-दर्शन है, जो मनुष्य को अहंकार त्यागने, समाज सेवा करने और ईश्वर में समर्पित रहने की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष
भगवान जगन्नाथ भारतीय संस्कृति, भक्ति और अध्यात्म का जीवंत प्रतीक हैं। उनका मंदिर, उनकी रथ यात्रा, उनकी मूर्ति, सब कुछ एक गहन संदेश देता है कि ईश्वर हर रूप में हमारे बीच मौजूद हैं — बस हमें उन्हें पहचानने और समझने की आवश्यकता है।
यदि आप भगवान श्रीकृष्ण के भक्त हैं, तो भगवान जगन्नाथ के स्वरूप में आपको उसी दिव्यता की अनुभूति होगी, जो गीता, महाभारत और भागवत में वर्णित है।



🙏
ReplyDeleteJay Jagannath 🙏🙏
ReplyDelete