सम्राट अशोक महान : मौर्य वंश का अद्वितीय सम्राट
प्रस्तावना
भारत के इतिहास में अनेक ऐसे शासक हुए जिन्होंने अपनी वीरता, बुद्धिमत्ता और प्रशासनिक कौशल से देश की दिशा बदल दी। किंतु उन सबमें जो नाम सबसे उज्ज्वल अक्षरों में लिखा गया है, वह है — सम्राट अशोक महान।
अशोक केवल एक विजेता नहीं थे, बल्कि मानवता, धर्म और शांति के प्रतीक बने। उन्होंने अपने जीवन में युद्ध की विभीषिका को स्वयं देखा और फिर उसी अनुभव ने उन्हें हिंसा से अहिंसा की ओर मोड़ दिया। अशोक के शासनकाल में भारत की भौगोलिक सीमाएँ विशालतम थीं, परंतु उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी — मानवता की विजय।
प्रारंभिक जीवन और परिवार
सम्राट अशोक का जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व में हुआ था। वे मौर्य वंश के महान शासक सम्राट बिंदुसार और उनकी रानी सुभद्रांगी (या धर्मा) के पुत्र थे।
अशोक के दादा चंद्रगुप्त मौर्य थे, जिन्होंने भारत में पहला विशाल साम्राज्य स्थापित किया था।
अशोक का बचपन राजमहल में बीता, लेकिन वे प्रारंभ से ही अत्यंत बुद्धिमान, साहसी और जिज्ञासु स्वभाव के थे।
अशोक ने तक्शशिला और उज्जैन जैसे प्रमुख शिक्षा केंद्रों से शिक्षा प्राप्त की। वे राजनीति, युद्धकला, दर्शन और धर्म के ज्ञाता बने। अपने युवाकाल में ही उन्होंने अनेक युद्ध लड़े और बिंदुसार के शासनकाल में ही उन्हें उज्जैन का गवर्नर बनाया गया।
राजगद्दी पर आरोहण
बिंदुसार के बाद जब उत्तराधिकारी का प्रश्न उठा, तो अशोक के बड़े भाई सुसिमा ने गद्दी पर अधिकार करने की कोशिश की।
कुछ ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, इस संघर्ष में अशोक ने सुसिमा को पराजित कर गद्दी प्राप्त की।
273 ईसा पूर्व में बिंदुसार की मृत्यु के बाद, अशोक ने शासन संभाला और 268 ईसा पूर्व में औपचारिक रूप से मौर्य साम्राज्य के सम्राट घोषित हुए।
राजगद्दी पर बैठने के बाद, अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने का बीड़ा उठाया। उस समय उनका राज्य उत्तरी भारत से लेकर अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और बंगाल तक फैला हुआ था।
कलिंग युद्ध : जीवन का निर्णायक मोड़
अशोक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) था।
कलिंग (आज का उड़ीसा) एक स्वतंत्र और समृद्ध राज्य था, जो मौर्य साम्राज्य के अधीन नहीं था।
अशोक ने कलिंग को जीतने के लिए युद्ध छेड़ा — यह युद्ध इतिहास के सबसे भीषण युद्धों में से एक था।
युद्ध की विभीषिका
युद्ध के बाद जब अशोक ने रणभूमि देखी, तो चारों ओर लाशों का ढेर, घायल सैनिकों की कराह, विधवाओं का विलाप और बच्चों की चीखें गूँज रही थीं।
इस युद्ध में एक लाख से अधिक लोग मारे गए, और लाखों घायल या कैदी बने।
इतिहास में लिखा है कि अशोक ने इस दृश्य को देखकर गहराई से पश्चाताप किया।
उन्होंने कहा —
“जो मैंने जीता है, वह भूमि नहीं, बल्कि पाप है।”
यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई। वे हिंसा से विमुख हुए और धर्म, करुणा और बौद्ध दर्शन की ओर मुड़ गए।
धर्म परिवर्तन और बौद्ध धर्म का स्वीकार
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध भिक्षु उपासक महेंद्र और मोग्गलिपुत्त तिस्स से दीक्षा ली।
उन्होंने बौद्ध धर्म को राज्य की नीति का अंग बनाया और अहिंसा, सत्य, और करुणा को जीवन का मार्ग स्वीकार किया।
अब उनका उद्देश्य युद्ध नहीं, बल्कि धर्म विजय बन गया।
उन्होंने कहा —
“मैं अब किसी और राज्य को जीतना नहीं चाहता, मैं केवल मानव के हृदय को जीतना चाहता हूँ।”
अशोक का प्रशासन और शासन प्रणाली
अशोक ने मौर्य साम्राज्य को एक संगठित और सुव्यवस्थित रूप दिया। उन्होंने राज्य प्रशासन को धर्म पर आधारित किया।
उनकी प्रशासनिक व्यवस्था इतनी व्यवस्थित थी कि आज भी शासन के आदर्श के रूप में देखी जाती है।
मुख्य विशेषताएँ –
1. धम्म नीति (Dhamma Policy) – यह अशोक की सबसे प्रमुख नीति थी, जिसमें सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता, दया, सत्य और अहिंसा का संदेश था।
2. राज्यपाल और अधिकारी – साम्राज्य को कई प्रांतों में बाँटा गया था, जिन पर “महामात्य” और “राजुक” जैसे अधिकारी तैनात थे।
3. न्याय व्यवस्था – अशोक ने सजा में मानवीय दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने “राजुकों” को आदेश दिया कि वे जनता की शिकायतों को सुनें।
4. लोक कल्याण कार्य – उन्होंने सड़कों के किनारे पेड़ लगवाए, कुएँ खुदवाए, अस्पताल बनवाए, पशुओं के लिए शरण स्थल स्थापित किए और शिक्षा संस्थान खोले।
अशोक के शिलालेख और अभिलेख
अशोक ने अपने विचारों और आदेशों को शिलालेखों (Rock Edicts) और स्तंभलेखों (Pillar Edicts) के माध्यम से पूरे साम्राज्य में प्रसारित किया।
ये शिलालेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, यूनानी और अरामाइक लिपि में लिखे गए हैं।
मुख्य शिलालेख:
गिरनार (गुजरात)
धौली (उड़ीसा)
सांची (मध्य प्रदेश)
सारणाथ (उत्तर प्रदेश)
लौरी नंदनगढ़ (बिहार)
इन शिलालेखों में उन्होंने बताया कि राजा का सबसे बड़ा धर्म है — जनसेवा।
बौद्ध धर्म का प्रचार और विदेश नीति
अशोक ने केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रसार किया।
इसके अलावा नेपाल, अफगानिस्तान, बर्मा, थाईलैंड, चीन और यूनान तक बौद्ध संदेश पहुँचा।
अशोक के शासनकाल में भारत और अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध भी मजबूत हुए।
उन्होंने धर्म के आधार पर विश्व बंधुत्व की भावना को जन्म दिया।
अशोक की वास्तुकला और कला
अशोक का काल भारतीय कला और स्थापत्य का स्वर्ण युग कहा जाता है।
उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अनेक स्तूप, विहार और स्तंभ बनवाए।
प्रमुख निर्माण कार्य –
सांची स्तूप (मध्य प्रदेश)
धौली स्तूप (उड़ीसा)
सारणाथ स्तंभ (उत्तर प्रदेश) – जिसमें अशोक का सिंहचिह्न अंकित है, जो आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
बोधगया का विकास – जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
इन स्थापत्य कृतियों में भारतीय संस्कृति की महानता झलकती है।
धम्म नीति की विशेषताएँ

अशोक की धम्म नीति का उद्देश्य किसी धर्म विशेष का प्रचार नहीं था, बल्कि समानता, दया और सद्भाव का प्रसार था।
इस नीति के मुख्य बिंदु थे:
1. सभी धर्मों का सम्मान करो।
2. माता-पिता, गुरु और बुजुर्गों का आदर करो।
3. दासों और सेवकों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करो।
4. हिंसा का त्याग करो।
5. जीवों के प्रति करुणा रखो।
6. सत्य और संयम का पालन करो।
अशोक के अनुसार “धम्म” का अर्थ था – सत्य आचरण और नैतिक जीवन।
अशोक की व्यक्तिगत जीवन यात्रा
अशोक का व्यक्तिगत जीवन भी काफी रोचक रहा।
उनकी प्रमुख पत्नियों में देवी, कारुवाकी, और असंधिमित्रा का उल्लेख मिलता है।
देवी से उन्हें दो संतानें हुईं — महेंद्र और संघमित्रा, जिन्होंने आगे चलकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
अशोक का जीवन अंत तक साधारण और तपस्वी बन गया था। उन्होंने राजसी वैभव त्यागकर लोककल्याण में स्वयं को समर्पित कर दिया।
अशोक का उत्तरकाल और निधन
अशोक के जीवन के अंतिम वर्षों में वे गहराई से धार्मिक और सामाजिक कार्यों में लगे रहे।
उन्होंने हजारों भिक्षुओं को सहयोग दिया, मंदिरों का निर्माण करवाया और जनता के दुख-दर्द को दूर करने का प्रयास किया।

अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में हुई।
उनकी मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हो गया, परंतु अशोक का नाम अमर हो गया।
अशोक की विरासत और प्रभाव
1. राष्ट्रीय प्रतीक – अशोक का सिंहचिह्न आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
2. राष्ट्रीय ध्वज का चक्र – हमारे तिरंगे में जो नीला चक्र है, वह अशोक के सारनाथ स्तंभ का धर्मचक्र है।
3. बौद्ध धर्म का विश्व प्रसार – अशोक के प्रयासों से बौद्ध धर्म एक वैश्विक धर्म बना।
4. नैतिक शासन का आदर्श – उन्होंने राजनीति में नैतिकता और करुणा का समावेश किया।
5. विश्व शांति का प्रतीक – आज भी उन्हें विश्व शांति और मानवता के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन
इतिहासकारों के अनुसार, अशोक का काल भारत की सबसे स्थिर और समृद्ध शासन व्यवस्था का काल था।
वह केवल एक राजा नहीं बल्कि एक दर्शनशास्त्री शासक थे।
उनका शासन नीतियों, नैतिकता और लोक कल्याण पर आधारित था।
अशोक ने यह सिद्ध किया कि सच्चा शासक वह है जो जनता के लिए कार्य करे, न कि केवल सत्ता के लिए।
निष्कर्ष
अशोक महान ने युद्ध से जीत नहीं, बल्कि मानवता से विजय प्राप्त की।
उन्होंने एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जो आज भी शासन और समाज दोनों के लिए प्रेरणा है।
उनके द्वारा स्थापित मूल्य — सत्य, अहिंसा, दया और धर्म — आज भी प्रासंगिक हैं।
वास्तव में, अशोक वह राजा थे जिन्होंने कहा था —
“मेरे लिए सबसे बड़ा धर्म है मानवता।”
उनकी यही सोच उन्हें भारत के इतिहास का सबसे महान सम्राट बनाती है।



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