पृथ्वीराज चौहान: जीवन परिचय
🔹 मूल परिचय
पूरा नाम: पृथ्वीराज तृतीय चौहान
जन्म: लगभग 1166 ईस्वी
जन्म स्थान: अजमेर, राजस्थान
पिता: सोमेश्वर चौहान (अजमेर के शासक)
माता: करपूरी देवी (कन्नौज की राजकुमारी)
वंश: चौहान वंश (राजपूत)
राजधानी: अजमेर और दिल्ली
उपाधि: “सम्राट पृथ्वीराज चौहान”, “राय पिथौरा”
🔹 शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
इन्हें संस्कृत, हिंदी, राजनीति, धनुर्विद्या, तलवारबाज़ी और घुड़सवारी की शिक्षा मिली।
वीरता और तेजस्विता के कारण इन्हें कम उम्र में ही सबकी प्रशंसा मिली।
इनकी शिक्षा-दीक्षा में चंदबरदाई (राजकवि और मित्र) का विशेष योगदान था।
🔹 गद्दी पर बैठना
1179 ईस्वी में, केवल 13 वर्ष की आयु में, पिता सोमेश्वर चौहान की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान अजमेर और दिल्ली के राजा बने।
कम उम्र के बावजूद उन्होंने अद्भुत शौर्य और साहस दिखाया।
🔹 प्रशासन और साम्राज्य
पृथ्वीराज ने अपने राज्य का विस्तार अजमेर से दिल्ली तक किया।
शासन में न्यायप्रिय और जनता के हितैषी माने जाते थे।
दिल्ली को उन्होंने अपनी प्रमुख राजधानी बनाया।
🔹 संयोगिता (संयोगिता हरण)
पृथ्वीराज चौहान का नाम उनकी प्रेम कहानी के कारण भी प्रसिद्ध है।
संयोगिता, कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थीं।
जयचंद ने पृथ्वीराज का विरोध करते हुए अपनी पुत्री का स्वयंवर रखा और पृथ्वीराज को आमंत्रण नहीं भेजा।
कहा जाता है कि स्वयंवर के समय पृथ्वीराज ने संयोगिता का हरण किया और उसे अपने साथ दिल्ली ले आए।
इस घटना से दिल्ली और कन्नौज के बीच शत्रुता और बढ़ गई।
🔹 मोहम्मद गौरी से युद्ध
पृथ्वीराज चौहान का जीवन मुख्य रूप से मोहम्मद गौरी से हुए युद्धों के कारण प्रसिद्ध है।
⚔️ पहला युद्ध – तराइन का युद्ध (1191 ई.)
स्थान: तराइन (थानेसर, हरियाणा के पास)
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी आमने-सामने हुए।
गौरी घायल होकर युद्धभूमि से भाग गया।
यह पृथ्वीराज की सबसे बड़ी जीत थी।
⚔️ दूसरा युद्ध – तराइन का युद्ध (1192 ई.)
अगले वर्ष गौरी ने फिर से आक्रमण किया।
इस बार गौरी ने अपनी सेना को बेहतर रणनीति के साथ सजाया और अफगान + तुर्क घुड़सवारों का प्रयोग किया।
राजपूत सेना के पास एकजुटता की कमी थी और विश्वासघात भी हुआ।
पृथ्वीराज पराजित हुए और उन्हें बंदी बना लिया गया।
यही युद्ध भारत के इतिहास का निर्णायक मोड़ माना जाता है।
🔹 कैद और अंत
गौरी ने पृथ्वीराज को ग़ज़नी ले जाकर अंधा करवा दिया।
लेकिन उनके कवि और मित्र चंदबरदाई भी साथ गए।
चंदबरदाई ने "पृथ्वीराज रासो" में लिखा कि उन्होंने एक योजना बनाई।
गौरी ने पृथ्वीराज को अपनी वीरता दिखाने का मौका दिया, तब चंदबरदाई ने कविता में संकेत दिया –
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान।”
पृथ्वीराज ने अपनी धनुष-बाण से लक्ष्य किया और गौरी को मार गिराया।
इसके बाद पृथ्वीराज और चंदबरदाई ने आत्महत्या कर ली (कुछ कथाओं में कहा जाता है कि गौरी ने उन्हें मार डाला)।
🔹 पृथ्वीराज चौहान रासो
पृथ्वीराज चौहान की वीरता का वर्णन उनके मित्र और कवि चंदबरदाई ने "पृथ्वीराज रासो" नामक ग्रंथ में किया है।
इसमें उनके जीवन, युद्ध, प्रेम और वीरता का विस्तृत विवरण मिलता है।
🔹 ऐतिहासिक महत्व
पृथ्वीराज चौहान भारत के अंतिम स्वतंत्र हिंदू सम्राट माने जाते हैं जिन्होंने दिल्ली पर शासन किया।
उनके बाद दिल्ली पर मुस्लिम सल्तनत की स्थापना हुई।
वे भारत के इतिहास में वीरता, शौर्य और देशभक्ति के प्रतीक हैं।
🏹 संक्षेप में
जन्म: 1166 ई., अजमेर
वंश: चौहान वंश
पिता: सोमेश्वर चौहान
प्रमुख युद्ध: 1191 और 1192 के तराइन युद्ध
जीवन की बड़ी घटना: संयोगिता हरण
मृत्यु: 1192-93 ई. (ग़ज़नी या अजमेर, विवरण अलग-अलग)
महत्व: दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक, वीरता के प्रतीक



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