निसार (NISAR) मिशन: उन्नत ड्यूल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार द्वारा पृथ्वी का विस्तृत अवलोकन
परिचय
आज का युग अंतरिक्ष विज्ञान और पृथ्वी के पर्यावरण की निगरानी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलावों का है। इसी दिशा में भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसियों – इसरो (ISRO) और नासा (NASA) – ने मिलकर एक महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन की नींव रखी है, जिसका नाम है निसार (NISAR - NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar)।
यह मिशन विश्व का पहला ऐसा उपग्रह मिशन होगा, जो ड्यूल-बैंड (L और S बैंड) सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का उपयोग करेगा।
यह अत्याधुनिक तकनीक धरती की सतह पर हो रहे बदलावों को अत्यंत उच्च रिज़ोल्यूशन और बड़े क्षेत्रफल (large swath) में कैप्चर करने में सक्षम होगी। इस मिशन की सबसे खास बात यह है कि इसमें "SweepSAR" नामक एक नवीन तकनीक का प्रयोग किया गया है, जिससे पृथ्वी की गहन और व्यापक निगरानी संभव हो सकेगी।
आइए इस मिशन के हर पहलू को विस्तार से समझते हैं।
1. निसार मिशन का उद्देश्य
NISAR मिशन का मूल उद्देश्य पृथ्वी की बदलती सतह की संरचनाओं और गतिविधियों की निगरानी करना है। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित लक्ष्य शामिल हैं:
भूकंप, ज्वालामुखी और भूस्खलन जैसे भूगर्भीय घटनाओं की समय-समय पर निगरानी।
ग्लेशियरों, बर्फ की चादरों और समुद्री बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया को समझना।
वनों की कटाई और भूमि उपयोग में हो रहे बदलाव को मापना।
जलवायु परिवर्तन और उसके परिणामस्वरूप हो रही समुद्र-स्तर की वृद्धि की जानकारी प्राप्त करना।
कृषि निगरानी,
जिससे फसल की वृद्धि और उत्पादन का मूल्यांकन किया जा सके।
जल संसाधनों के वितरण और उपयोग की जानकारी।
2. NISAR की तकनीकी विशेषताएं
(i) ड्यूल-बैंड SAR (L और S बैंड)
NISAR दो अलग-अलग माइक्रोवेव बैंड्स – L-बैंड और S-बैंड – का उपयोग करता है।
L-बैंड (1.25 GHz): NASA द्वारा विकसित; यह पेड़ों के नीचे की सतह को भेदकर ज़्यादा गहराई से डेटा प्रदान करता है।
S-बैंड (3.2 GHz): ISRO द्वारा विकसित; यह धरती की सतह पर होने वाले छोटे-छोटे बदलावों को पहचान सकता है।
इस संयोजन से यह उपग्रह दुनिया की सतह पर हो रहे परिवर्तन की बहुत ही विस्तृत और स्पष्ट तस्वीरें ले सकता है।
(ii) SweepSAR तकनीक
यह तकनीक पारंपरिक SAR से बिल्कुल अलग है। इसमें एंटीना को एक विशिष्ट कोण पर स्विंग कराया जाता है जिससे वह ज़्यादा क्षेत्रफल को कवर कर सके।
मुख्य लाभ: High-resolution इमेजिंग के साथ-साथ बड़ी चौड़ाई (Swath) को स्कैन करना, जिससे हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की सतह को दोबारा स्कैन किया जा सकता है।
(iii) इमेजिंग क्षमता
NISAR हर 12 दिन में पृथ्वी की लगभग पूरी भूमि, बर्फ-आवृत्त सतह, समुद्री द्वीपों और कुछ महासागरों की छवियों को कैप्चर करेगा। इसकी इमेजिंग क्षमता लगभग 240 किमी तक की चौड़ाई में फैली हुई है, जो अन्य उपग्रहों की तुलना में काफी अधिक है।
3. भारत-अमेरिका सहयोग का उदाहरण
NISAR मिशन भारत और अमेरिका के बीच उच्च स्तर के तकनीकी सहयोग का प्रतीक है।
NASA की भूमिका:
L-band SAR रडार
GPS रिसीवर
Payload Data Subsystem
हाई रेट साइंस डेटा स्टोरेज
ISRO की भूमिका:
S-band SAR
सैटेलाइट का निर्माण और एकीकरण
रॉकेट लॉन्च (GSLV Mk-II)
डेटा रीसिविंग ग्राउंड स्टेशन
यह संयुक्त मिशन न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दोनों देशों के वैज्ञानिकों के बीच सहयोग और विश्वास को भी दर्शाता है।
4. डेटा का प्रयोग: कहां और कैसे?
NISAR द्वारा प्राप्त आंकड़े शोधकर्ताओं, सरकारों, आपदा प्रबंधन संस्थानों, कृषि योजनाकारों, और पर्यावरण संगठनों के लिए बेहद उपयोगी होंगे।
उदाहरण:
भूकंप: प्लेटों की हलचल को मापकर भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान।
ग्लेशियर: हिमालय, अंटार्कटिका और आर्कटिक क्षेत्रों में बर्फ की मोटाई और गति का विश्लेषण।
वन कटाई: अमेजन, भारत के जंगलों और अफ्रीकी वर्षावनों की निगरानी।
कृषि: फसल की वृद्धि का मूल्यांकन, सूखा प्रभावित क्षेत्रों की पहचान।
5. पर्यावरण संरक्षण में भूमिका
जलवायु परिवर्तन आज के समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। NISAR का डेटा इस बदलाव को वैज्ञानिक रूप से मापने और समझने में अत्यंत सहायक होगा।
समुद्र-स्तर में वृद्धि
आर्कटिक बर्फ का पिघलना
सूखा और बाढ़ की संभावना
जंगलों में आग लगने की निगरानी
6. वैज्ञानिकों और छात्रों के लिए वरदान
यह मिशन शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और विद्यार्थियों के लिए बड़े पैमाने पर डेटा और अनुसंधान के अवसर उपलब्ध कराएगा। भारत और विश्वभर के विश्वविद्यालय इस डेटा का उपयोग विभिन्न अनुसंधानों और परियोजनाओं में कर सकेंगे।
7. लॉन्च और संचालन
लॉन्च की योजना: 2024 के अंत या 2025 की शुरुआत (GSLV Mk-II द्वारा श्रीहरिकोटा से)
कक्षा (Orbit): NISAR को Sun-Synchronous Polar Orbit में रखा जाएगा ताकि वह हर क्षेत्र को समान प्रकाश की स्थिति में इमेज कर सके।
जीवनकाल: लगभग 3 वर्ष का मिशन जीवन निर्धारित है, जिसे आगे बढ़ाया भी जा सकता है।
8. भविष्य की दिशा
NISAR का डेटा न केवल पर्यावरणीय बदलावों को समझने में सहायक होगा, बल्कि इससे भविष्य की नीतियाँ और योजनाएं बनाना भी आसान होगा। यह मिशन:
आपदा प्रबंधन को प्रभावी बनाएगा
कृषि और जल संसाधन योजनाओं में सुधार लाएगा
पर्यावरण नीति निर्माण में सहायता करेगा
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नए द्वार खोलेगा
निष्कर्ष
NISAR मिशन वैज्ञानिक उपलब्धियों और वैश्विक सहयोग का एक उज्ज्वल उदाहरण है। भारत और अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से विकसित यह उपग्रह न केवल पृथ्वी की बदलती स्थिति पर नज़र रखेगा, बल्कि इसके माध्यम से हम जलवायु,
प्राकृतिक आपदाओं, कृषि और पर्यावरण की बेहतर समझ प्राप्त कर सकेंगे।
यह मिशन आने वाले वर्षों में मानव जाति के लिए एक अमूल्य संसाधन साबित होगा, जिससे हम अपनी धरती को बेहतर समझ सकें और उसके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठा सकें।





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