भक्त की भक्ति से राधा रानी हुईं प्रसन्न, और दिया अपने अटारी व चरणों में स्थान
स्थान: बरसाना धाम, उत्तर प्रदेश
काल: अज्ञात — लेकिन यह कथा युगों से लोकमानस में जीवित है।
🌺 प्रारंभ – एक साधारण लेकिन सच्चा भक्त
बरसाना की पावन भूमि पर, जहाँ राधा रानी की अटारी अब भी भक्तों को अपनी दिव्यता से खींचती है, वहीं एक साधारण सा युवक “श्यामदास” रहा करता था। न तो उसके पास धन था, न रिश्तेदार, न ही कोई worldly महत्वाकांक्षा। उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था — राधा रानी की सेवा और प्रेम।
श्यामदास एक छोटी सी झोपड़ी में रहता था, रोज़ सुबह उठकर सबसे पहले बरसाना मंदिर जाता, राधारानी को फूल चढ़ाता, और फिर मंदिर के बाहर बैठकर "राधे राधे" का नाम जपता। उसका प्रेम इतना निश्छल था कि मंदिर के पुजारी तक उसे देखकर भावविभोर हो जाते।
🪔 सेवा में समर्पण
श्यामदास की भक्ति कोई दिखावे वाली नहीं थी। वह मंदिर के बाहर सफाई करता, भक्तों के लिए जल का प्रबंध करता और कभी-कभी अपने हिस्से की रोटियाँ किसी भूखे साधु को दे देता। वह कहता —
"मुझे राधारानी की सेवा चाहिए, बदले में कुछ नहीं।"
उसने कभी राधारानी से कोई वरदान नहीं माँगा, न कोई सुख-सुविधा। वह केवल एक ही विनती करता था —
"हे राधे! जब आप मुस्कुराएँ, तो मुझे आपकी झलक मिल जाए।"
🌙 चमत्कार की रात
एक रात्रि की बात है, शरद पूर्णिमा थी। बरसाना में विशेष रासलीला का आयोजन हुआ था। श्यामदास सारा दिन मंदिर की सेवा में लगा रहा और रात होते ही मंदिर के पीछे एक पेड़ के नीचे बैठकर राधारानी का नाम जपने लगा।
आधी रात बीत गई, शीतल हवा चल रही थी और चाँदनी अपने चरम पर थी। तभी उसकी आँखें बंद हुईं और एक अद्भुत प्रकाश उसके सामने प्रकट हुआ। उसने जब आंखें खोलीं तो देखा —
स्वयं राधारानी, साक्षात रूप में, अपनी अटारी से नीचे आईं।
वो अकेली नहीं थीं — उनके साथ कुछ गोपियाँ थीं। राधारानी मुस्कुरा रहीं थीं, और कह रही थीं: "श्यामदास! तेरी भक्ति ने हमें बाध्य कर दिया। तूने कभी कुछ नहीं माँगा, फिर भी तूने हमें सब कुछ दे दिया — प्रेम, सेवा, समर्पण।"
श्यामदास काँपते हुए राधारानी के चरणों में गिर पड़ा।
🌼 चरणों में स्थान
राधारानी ने स्वयं अपने करकमलों से उसे उठाया और कहा:
"आज से तू हमारे लिए केवल भक्त नहीं, परिवार का हिस्सा है। चल, हमारे अटारी में चल।"
यह वह अटारी थी, जहाँ केवल विशेष पर्वों पर ही कोई सेवक जा सकता था, वो भी एकदम सीमित समय के लिए। लेकिन राधारानी ने श्यामदास को वहाँ ले जाकर एक विशेष कोना दिखाया, जहाँ लिखा था —
“यह स्थान केवल उस प्रेमी के लिए है,
जिसने बिना माँगे प्रेम किया।”
श्यामदास की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी।
राधारानी ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा:
"अब से जब कोई भक्त निस्वार्थ प्रेम करेगा, तू वहाँ होगा — उसका मार्गदर्शन करने के लिए।"
🌷 अगली सुबह
अगली सुबह जब पुजारी मंदिर पहुँचे, तो उन्हें मंदिर के पीछे वो स्थान एकदम खिला-खिला लगा। वहाँ एक नई सी कमल की आकृति उग आई थी, और उसके मध्य में एक चमकती रेखा — जैसे किसी दिव्य पदचिह्न की।
जब लोगों ने श्यामदास को खोजा, तो उसकी झोपड़ी खाली मिली। न वो कहीं गया था, न लौटा।
कुछ बुज़ुर्गों ने कहा —
"श्यामदास अब राधारानी की सेवा में ब्रह्मलोक में चला गया है।"
और तभी से, उस अटारी के कोने को "श्यामदास स्थान" कहा जाने लगा। आज भी बरसाना आने वाले सच्चे भक्त, जब निष्काम भक्ति करते हैं — तो उन्हें राधारानी के अटारी में उस कोने से एक गंध आती है — केवड़ा और गुलाब जैसी।
✨ यह कथा हमें क्या सिखाती है?
भक्ति में दिखावा नहीं, निस्वार्थ प्रेम चाहिए।
राधारानी को प्रेम और सेवा चाहिए, वरदान नहीं।
जो बिना माँगे भक्ति करता है, उसे राधा स्वयं अपना स्थान देती हैं।
परमात्मा का साक्षात्कार केवल मंदिरों से नहीं, मन के समर्पण से होता है।
🕊️ अंत में...
बरसाना की गलियों में आज भी जब कोई “राधे राधे” कहते हुए सच्चे मन से चलता है — तो उसे श्यामदास की छवि दिखती है।
राधारानी की कृपा अनंत है — बस आपको निष्काम भाव से पुकारना आना चाहिए।
"प्रेम वह दीप है जो बिना बाती और तेल के भी जलता है — बस उसमें सच्चाई होनी चाहिए।"



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